आज सुनते हैं कि मेरे घर वो यार आने को है अपने क़ाबू में दिल-ए-बे-इख़्तियार आने को है बुलबुलें हैं नग़्मा-ज़न फूला हुआ है बाग़बाँ बाग़ में खिलती हैं कलियाँ क्या बहार आने को है देखता हूँ चश्म-ए-नर्गिस आज शर्माई हुई क्या तुम्हारी दीद का उम्मीद-वार आने को है मिस्ल-ए-तस्वीर-ए-ख़याली मुर्ग़-ए-बुसताँ हैं ख़मोश बाग़बाँ गुलशन में कोई दिल-फ़िगार आने को है ऐ 'जमीला' फ़स्ल-ए-गुल आई चला सहरा को मैं मेहमाँ बन कर मिरे तलवों में ख़ार आने को है