आज उन्हें देख लिया बज़्म में फ़र्ज़ानों की हम ने तारीफ़ सुनी थी तिरे दीवानों की दीदा-वर सिलसिला-ए-अश्क समझते हैं जिसे कहकशाँ है मिरे महबूब के एहसानों की तुम को आना है तो आ जाओ उजाला है अभी शमएँ रौशन हैं मिरे ग़म के शबिस्तानों की मो'तरिज़ हैं मिरी दीवाना-वशी पर वो लोग जिन को दामन की ख़बर है न गरेबानों की हम हैं मय-ख़ाना-ए-फ़ितरत के शराबी हम को न सुराही की ज़रूरत है न पैमानों की हँस रहे हो तो हँसो और हँसो ख़ूब हँसो हालत-ए-ज़ार पे हम बे-सर-ओ-सामानों की अहद-ए-हाज़िर के नए 'मीर' वहाँ होंगे 'हबाब' मुझ को महफ़िल में न ले जाओ सुख़न-दानों की