इश्क़ मैं ने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में और तेरा दिल लिखा शहरियत के ख़ाने में मुझ को तजरबों ने ही बाप बन के पाला है सोचता हूँ क्या लिखूँ वलदियत के ख़ाने में मेरा साथ देती है मेरे साथ रहती है मैं ने लिखा तन्हाई ज़ाैजियत के ख़ाने में दोस्तों से जा कर जब मशवरा किया तो फिर मैं ने कुछ नहीं लिखा हैसियत के ख़ाने में इम्तिहाँ मोहब्बत का पास कर लिया मैं ने अब यही मैं लिखूँगा अहलियत के ख़ाने में जब से आप मेरे हैं फ़ख़्र से मैं लिखता हूँ नाम आप का अपनी मिलकियत के ख़ाने में