आज वो ख़ुशबू मिरे गुलज़ार में भी आएगी उस के आने से महक अशआर में भी आएगी ख़्वाब में देखा था उस को ये तो सोचा भी न था वो मिरे काशाना-ए-अफ़्कार में भी आएगी ना-बलद होना दुआ-ए-नूह से अच्छा नहीं कश्ती-ए-हस्ती तिरी मंजधार में भी आएगी कह रही है रेगज़ारों से नई रुत की हवा अब बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ कोहसार में भी आएगी उस ने फ़र्श-ए-बाग़ पर छिड़की है आँखों से शराब मस्ती-ए-मय अब गुल-ओ-गुलज़ार में भी आएगी बे-नवा लफ़्ज़ों को बख़्शेंगे अगर ए'ज़ाज़ हम ताज़गी पैराया-ए-इज़हार में भी आएगी हार की शर्मिंदगी से बच गया मेरा हरीफ़ क्या ख़बर थी ये ख़बर अख़बार में भी आएगी बिक रहे हैं मर्मरी जिस्म एक रोटी के एवज़ ये गिरावट अब सुख़न-बाज़ार में भी आएगी वो भी दिन आएगा जब शहज़ादी-ए-मुल्क-ए-सुख़न मुझ से मिलने को बड़े दरबार में भी आएगी साहिलों पर घर बनाएँगे अगर 'शीबान' हम कुछ नमी घर के दर-ओ-दीवार में भी आएगी