आज़ार-ओ-अज़िय्यत है यक-तरफ़ा मोहब्बत भी इक तुर्फ़ा क़यामत है यक-तरफ़ा मोहब्बत भी सुनते थे कि क़िस्सा है अफ़्सानों का हिस्सा है जाना कि हक़ीक़त है यक-तरफ़ा मोहब्बत भी ख़ुद से ही छुपाते हैं ख़ुद को ही जलाते हैं ख़ुद से ही रक़ाबत है यक-तरफ़ा मोहब्बत भी इक शख़्स से वाबस्ता जज़्बात हैं सफ़-बस्ता इक तर्ज़-ए-अक़ीदत है यक-तरफ़ा मोहब्बत भी मैं चाहता हूँ उस को जिस के मैं नहीं क़ाबिल क्या ख़ूबी-ए-क़िस्मत है यक-तरफ़ा मोहब्बत भी