कोई अच्छी ख़बर आती नहीं है शब-ए-ग़म की सहर आती नहीं है वो मस्त-ए-राहत-ए-ख़्वाब-ए-सहर हैं जिन्हें याद-ए-सफ़र आती नहीं है कहीं पर तो यक़ीनन है ख़राबी ब-ज़ाहिर जो नज़र आती नहीं है मैं सब की ख़ैर माँगूँ इस यक़ीं से दुआ तो लौट कर आती नहीं है 'यशब' को दिल से हिजरत रास है अब किसी सूरत वो घर आती नहीं है