आँख भर आई है मेरी सीले सीले लफ़्ज़ हैं ये मिरी रूदाद मेरे गीले गीले लफ़्ज़ हैं वस्ल-ए-ख़ुश-इम्कान को भूला नहीं वो हिज्रती केसरी नामे हैं जिन में नीले नीले लफ़्ज़ हैं देख ले तू खोल कर अपनी ये ज़म्बील-ए-सुख़न और तो कुछ भी नहीं कड़वे कसीले लफ़्ज़ हैं ज़िंदगी कड़वी है पर ख़ुश-ज़ाएक़ा मेरा कहा होंट रख कर देख ले मीठे रसीले लफ़्ज़ हैं शेर की महफ़िल में सब से मुख़्तलिफ़ मेरी ग़िना काँच जैसा हल्क़ है और सब सुरीले लफ़्ज़ हैं एक दो 'महनाज़-अंजुम' हों गुलाबी फूल भी ध्यान की टहनी पे कितने पीले पीले लफ़्ज़ हैं