बहुत हैं ज़िंदगी में ग़म सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम तुम्हारे रू-ब-रू हैं हम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम तुम्हारी ख़ामुशी पर बस हमारी जान जाती है हमारी ज़िंदगी है कम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम कहा था तुम ने आँखों में ये दुनिया भूल जाओगे तुम्हें क्या ख़ौफ़ है हर दम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम हमें दे दो उदासी आँख में कब तक छुपाओगे बना देंगे इसे शबनम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम सजा कर चाँद का गजरा ये पगली रात आती है बिखरती साँस की सरगम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम लहराते गुल-मोहर पर ये उतरती साँझ ठहरी है बदल जाए न ये मौसम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम फ़साना दिल का कह लो आज जाने कब मिलें हम तुम चराग़ों में अभी है दम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम