आँख चुरा कर निकल गए हुश्यारी की समझ गए तुम भी मौक़े की बारीकी दरिया पार सफ़र की जब तय्यारी की मौसम ने हर बार बड़ी ग़द्दारी की अब लगता है मुड़ के देख तो सकता था आख़िर हद भी होती है ख़ुद्दारी की बार बार आकाश ने की आतिश-बाज़ी रात मनाया हम ने जश्न-ए-तारीकी शायद सिर्फ़ उजाला कर के बुझ जाए शायद निय्यत बदल जाए चिंगारी की धड़कन को लग़्ज़िश की छूट नहीं बिल्कुल दिल ने इतनी सख़्त हिदायत जारी की