क्यों न अब उस के रू-ब-रू रोएँ अब के आँसू नहीं लहू रोएँ मैं ज़ियादा न आप कम रोओ पास आओ कि हू-ब-हू रोएँ कौन है किस को फ़र्क़ पड़ता है घर में रोएँ कि कू-ब-कू रोएँ ख़ुश्क आँखों का रोना भी क्या है आँसुओं से करें वुज़ू रोएँ वक़्त-ए-रुख़्सत है सो ख़ुदा के लिए रख लें आँखों की आबरू रोएँ हाए छिन जाएगा हमारा दर्द ज़ख़्म होने लगे रफ़ू रोएँ हाँ अभी अश्क दर्द देते हैं धीरे धीरे बनेगी ख़ू रोएँ ऐ 'ज़िया' तेरे ज़ख़्म की लज़्ज़त दोस्त तो दोस्त हैं अदू रोएँ