आँख दरिया जिगर लहू करना कितना मुश्किल है आरज़ू करना तज्ज़िया दिल-नशीं ख़यालों का है ग़ज़ालों की जुस्तुजू करना तज़्किरा इन की दिल-नवाज़ी का और फिर मेरे रू-ब-रू करना बस यही एक शग़्ल-ए-तन्हाई रह गया ख़ुद से गुफ़्तुगू करना कुश्तगान-ए-अलम से सीखा है दर्द-मंदों की आबरू करना दोस्तों के करम से छोड़ दिया हम ने अंदेशा-ए-अदू करना बचना हर नोक-ए-ख़ार से 'अख़्तर' ज़ख़्म फूलों के भी रफ़ू करना