अभी तो पर भी नहीं तौलता उड़ान को मैं बिला-जवाज़ खटकता हूँ आसमान को मैं मुफ़ाहमत न सिखा दुश्मनों से ऐ सालार तिरी तरफ़ न कहीं मोड़ दूँ कमान को मैं मिरी तलब की कोई चीज़ शश-जिहत में नहीं हज़ार छान चुका हूँ तिरी दुकान को मैं नहीं क़ुबूल मुझे कोई भी नई हिजरत कटाऊँ क्यूँ किसी बल्वे में ख़ानदान को मैं तुझे नख़ील-ए-फ़लक से पटख़ न दूँ आख़िर तिरे समेत गिरा ही न दूँ मचान को मैं ये काएनात मिरे सामने है मिस्ल-ए-बिसात कहीं जुनूँ में उलट दूँ न इस जहान को मैं जिसे पहुँच नहीं सकता फ़लासफ़ा का शुऊर यक़ीं के साथ मिलाता हूँ उस गुमान को मैं