आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है है तमन्ना का वही जो ज़िंदगी का हाल है यूँ धुआँ देने लगा है जिस्म और जाँ का अलाव जैसे रग रग में रवाँ इक आतिश-ए-सय्याल है फैलते जाते हैं दाम-ए-नारसी के दाएरे तेरे मेरे दरमियाँ किन हादसों का जाल है घिर गई है दो ज़मानों की कशाकश में हयात इक तरफ़ ज़ंजीर-ए-माज़ी एक जानिब हाल है हिज्र की राहों से 'अकबर' मंज़िल-ए-दीदार तक यूँ है जैसे दरमियाँ इक रौशनी का साल है