आँख में परतव-ए-महताब सलामत रह जाए कोई सूरत हो कि इक ख़्वाब सलामत रह जाए रोज़ डहे जाए ये हारा तन ओ जाँ का लेकिन ढेर में इक दिल-ए-बे-ताब सलामत रह जाए वो किसी ख़ैर ख़ज़ाने की ख़बर देता है जो सफ़ीना पस-ए-सैलाब सलामत रह जाए दिल किसी मौज-ए-जुनूँ में जो लहू से लिख दे ऐसी तहरीर सर-ए-आब सलामत रह जाए प्यार वो पेड़ है सौ बार उखाड़ो दिल से फिर भी सीने में कोई दाब सलामत रह जाए लाख वो शौक़-सहीफ़ों को जला लें 'आली' राख में एक न इक बाब सलामत रह जाए