आख़िर को राह-ए-इश्क़ में हम सर के बल गए मुश्किल में हाथ पाँव हमारे निकल गए किस किस को याद कर के कोई रोए ऐ फ़लक आँखों के आगे लाख ज़माने बदल गए उश्शाक-ए-लखनऊ की कशिश देख ऐ मसीह लंदन के ख़ूब-रू भी फ़रंगी-महल गए अपना सुराग़ पूछते फिरते हैं मौत से आफ़त-ज़दों के हिज्र में नक़्शे बदल गए बदलो रदीफ़ और पढ़ो शेर ऐ 'मुनीर' क्या फ़ाएदा जो उस के क़्वाफ़ी बदल गए