आख़िरी बार अंधेरे के पुजारी सुन लें By Ghazal << बुझती आँखों से मिरी ख़्वा... आज रो कर तो दिखाए कोई ऐसा... >> आख़िरी बार अंधेरे के पुजारी सुन लें मैं सहर हूँ मैं उजाला हूँ हक़ीक़त हूँ मैं मैं मोहब्बत का तो देता हूँ मोहब्बत से जवाब लेकिन आ'दा के लिए क़हर-ओ-क़यामत हूँ मैं मिरा दुश्मन मुझे ललकार के जाएगा कहाँ ख़ाक का तैश हूँ अफ़्लाक की दहशत हूँ मैं Share on: