आँखों का शोर ख़ून की गंगा उतर गया इस ग़म ने काट खाया कि दिल बे-हुनर गया गुल-मोहर पे ख़िज़ाँ ने लगाई है ग़म की मुहर तीतर खंडर पे शाख़ की सिसकारी भर गया छाँव में चाँद के था मिरे साथ एक नूर सूरज गिरा जो सर पे सितारा मुकर गया दहका रही थी लफ़्ज़ को लहजे की तेज़ बर्फ़ ये मुंजमिद चराग़ क्या सीने को भर गया फुलवारियों पे नूर की तितली ने घर किया जुगनू कँवल की शाख़ पे महताब धर गया