आँखों के कँवल लब के चमन-ज़ार बहुत थे दीवाने मगर सैर से बेज़ार बहुत थे हम लोग कड़ी धूप के शैदाई थे वर्ना यूँ सर को छुपाने दर-ओ-दीवार बहुत थे हर शख़्स के चेहरे पे कई चेहरे थे चस्पाँ तुझ जैसे तिरे शहर में अय्यार बहुत थे टूटा हुआ पुल रेत की दीवार हवा तेज़ लगता है कि बस्ती में गुनहगार बहुत थे अल्फ़ाज़ अदा करती रहीं बोलती आँखें चुप रह के भी वो माइल-ए-गुफ़्तार बहुत थे आँखों के दरीचों में हया जाग रही थी सोए थे कुछ ऐसे कि वो बेदार बहुत थे वो शख़्स तो हर गाम पे देता रहा धोके तुम फिर भी 'नवेद' उस के परस्तार बहुत थे