आँखों की दहलीज़ पे आ कर बैठ गई तेरी सूरत ख़्वाब सजा कर बैठ गई कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैं ने फ़ौरन उस पर तितली आ कर बैठ गई ताना-बाना बुनते बुनते हम उधड़े हसरत फिर थक कर ग़श खा कर बैठ गई खोज रहा है आज भी वो गूलर का फूल दुनिया तो अफ़्वाह उड़ा कर बैठ गई रोने की तरकीब हमारे आई काम ग़म की मिट्टी पानी पा कर बैठ गई वो भी लड़ते लड़ते जग से हार गया चाहत भी घर-बार लुटा कर बैठ गई बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन गुड़ियों का अम्बार लगा कर बैठ गई अब के चराग़ों ने चौंकाया दुनिया को आँधी आख़िर में झुँझला कर बैठ गई एक से बढ़ कर एक थे दाँव शराफ़त के जीत मगर हम से कतरा कर बैठ गई तेरे शहर से हो कर आई तेज़ हवा फिर दिल की बुनियाद हिला कर बैठ गई