आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ यक-क़तरा ख़ूँ बग़ल में है दिल मिरी सो उस को पलकों से तेरी ख़ातिर क्यूँ-कर निचोड़ डालूँ वो आहू-ए-रमीदा मिल जाए तीरा-शब गर कुत्ता बनूँ शिकारी उस को भंभोड़ डालूँ ख़य्यात ने क़ज़ा के जामा सिया जो मेरा आया न जी में इतना क्या इस में जोड़ डालूँ वो संग-दिल हुआ है इक संग-दिल पे आशिक़ आता है जी में सर को पथरों से फोड़ डालूँ बैठा हूँ ख़ाली आख़िर ऐ आँसुओ करूँ क्या दो चार गोखरो ही लाओ न मोड़ डालूँ तक़्सीर 'मुसहफ़ी' की होवे मुआफ़ साहिब फ़रमाओ तो तुम्हारे ला उस को गोड़ डालूँ