दूर तक फैली हुई है तीरगी बातें करो डस न ले हम को कहीं ये ख़ामुशी बातें करो आओ पलकों से चुनें बिखरे हुए लम्हात को नींद आ जाए न जब तक ख़्वाब की बातें करो बस यही लम्हे ग़नीमत हैं कि हम तुम साथ हैं कौन जाने मिल भी पाएँ फिर कभी बातें करो सिर्फ़ इक कर्ब-ए-मुसलसल ही नहीं है ज़िंदगी मुख़्तसर वक़्फ़े की सूरत है ख़ुशी बातें करो रूह के नासूर तो रिसते रहेंगे उम्र भर दर्द में आ जाए शायद कुछ कमी बातें करो कौन जाने कल का सूरज देख भी पाएँगे हम जब तलक है रात बाक़ी बस यूँही बातें करो इस क़दर ख़ामोश रहना भी नहीं अच्छा 'रविश' छा न जाए ज़ेहन पर अफ़्सुर्दगी बातें करो