आँखों में मौज मौज कोई सोचने लगा पानी में बे-सबात नगर डूबने लगा इक शाख़-ए-रंग हात से मौसम के छुट गई ख़ाली बदन रगों में कोई लोटने लगा है अपने दरमियान कोई फ़स्ल-ए-नारवा दहलीज़ पे खड़ा में किसे सोचने लगा वो रौज़न-ए-ख़याल, सदा, साएगी समाँ फिर हर्फ़ ज़हर ज़हर ज़बाँ घोलने लगा मैं एक बर्ग-ए-ख़ुश्क कभी का असीर-ए-गर्द फिर कौन डाल डाल मुझे टाँकने लगा मैं बोलता रहा तो किसी ने नहीं सुना मैं चुप हुआ तो सारा नगर गूँजने लगा