ये सच है वफ़ा उस ने वा'दा किया तमाशा मगर कुछ ज़ियादा किया सलीक़े से रक्खा हर इक चीज़ को यूँ कमरे को अपने कुशादा किया कड़े कोस पग पग झुलसती ज़मीं ये रस्ता भी तय पा-पियादा किया यूँ ही अपने घर से निकल आए हैं सफ़र आज फिर बे-इरादा किया हर इक बात दिल मानता है मिरी कोई यार तो सीधा-सादा किया तरफ़-दार 'ग़ालिब' के हम भी रहे मगर 'मीर' से इस्तिफ़ादा किया लिबास अपना 'फ़ारूक़' ख़ुश-रंग था मगर धूप ने उस को सादा किया