आँखों में मिरे ग़म की तस्वीर संजो लोगे ये बात न सोची थी दामन को भिगो लोगे तुम तर्क-ए-तअल्लुक़ को क्यूँ चेहरे पे लिख लाए तुम ने तो कहा ये था ये राज़ न खोलोगे जब मेरा पता तुम से पूछेंगे गली वाले कुछ कह तो न पाओगे पलकों को भिगो लोगे सच-मुच ये बताओ तुम क्या मुझ से बिछड़ कर भी इन हिज्र की रातों में आराम से सो लोगे इस भीड़ में लोगों की मैं रो भी नहीं सकता इक तुम हो कि चुपके से तन्हाई में रो लोगे ये कौन है जो 'इशरत' है मेरे तआक़ुब में इतनी बड़ी दुनिया में किस किस को टटोलोगे