तशरीफ़ शब को लाना क्यों आर जानते हैं शायद कि आप हम को बद-कार जानते हैं ज़ुल्फ़ों के पेच में हम गो जानते नहीं कुछ पर सर पटक के अपना मन मार जानते हैं वहशत में जो जो हम ने पथरों से सर को मारा सहरा में जा के पूछो कोहसार जानते हैं अफ़्सोस जिन की ख़ातिर यूँ ख़ल्क़ में सुबुक हैं ख़ातिर का अपनी हम को वो यार जानते हैं ये भी नसीब-ओ-क़िस्मत गुल खाए जिन के ग़म में महफ़िल का अपनी हम को वो ख़ार जानते हैं मुतलक़ नहीं है पर्वा सैर-ए-चमन की 'इशरत' हम दाग़-ए-दिल को अपने गुलज़ार जानते हैं