आँखों में मिरी ख़्वाब बसर होने लगा है शायद तिरा नींदों से गुज़र होने लगा है जुज़ तेरे सभी से मुझे होने लगी वहशत इतना तिरी चाहत का असर होने लगा है यूँ दस्त-ए-मसीहाई रखा ज़ख़्मों पे तू ने हर ज़ख़्म मिरा रश्क-ए-क़मर होने लगा है शायद मिरे कमरे में भी अब रौशनी आए पैदा मिरी दीवार में दर होने लगा है तल्ख़ी ये कहाँ की तिरे लहजे में दर आई हर लफ़्ज़ तिरा सीना-सिपर होने लगा है वो आग लगाई है तिरे हिज्र ने दिल में हर लम्हा जुदाई का शरर होने लगा है अब 'राज़' छुपाए नहीं छुपती मिरी वहशत ज़ाहिर पे भी बातिन का असर होने लगा है