आँखों से ख़ून अपने ये कहता नहीं न जाए पर साथ उस के लिपटा हुआ दिल कहीं न जाए इतनी तो चाहिए तुझे पास-ए-शिकस्ता-दिल जो आवे तेरे याँ सो वो अंदोहगीं न जाए सब्र-ओ-क़रार-ओ-होश-ओ-ख़िरद सब के सब ये जाएँ पर दाग़-ए-इश्क़ सीने से ऐ हम-नशीं न जाए दैर-ओ-हरम में जा के जो चाहे फिर आ सके पर आवे जो गली में तिरी वो कहीं न जाए हम गिर्या-नाक हैं ये सदा से है ऐब-पोश आँखों से दूर अपने कहीं आस्तीं न जाए है पारा-ए-अक़ीक़ जिगर देखियो कहीं ऐ चश्म तेरे हाथ से ऐसा नगीं न जाए निकले न जान तन से 'हसन' की तो तब तलक जब तक तू उस के सर पे दम-ए-वापसीं न जाए