हम से रूठी हर ख़ुशी है आज कल कश्मकश में ज़िंदगी है आज कल अब शुमार-ए-दुश्मनाँ मुमकिन नहीं दोस्तों की ही कमी है आज कल जहल का है बोल बाला चार सू आगही अन्क़ा हुई है आज कल लफ़्ज़ को बरता सलीक़े से मगर मा'नविय्यत की कमी है आज कल नग़्मगी उस में न शेरियत कहीं शाइ'री बे-कैफ़ सी है आज कल है तक़ाज़ा वक़्त का क्या कीजिए दुश्मनों से दोस्ती है आज कल अम्न गर क़ाएम रहे तो किस तरह शरपसंदी बढ़ गई है आज कल इंक़लाब आएगा कैसे ऐ 'ज़की' सरफ़रोशों की कमी है आज कल