आँखों से ख़्वाब दिल से तमन्ना तमाम-शुद तुम क्या गए कि शौक़-ए-नज़ारा तमाम-शुद कल तेरे तिश्नगाँ से ये क्या मोजज़ा हुआ दरिया पे होंट रक्खे तो दरिया तमाम-शूद दुनिया तो एक बर्फ़ की सिल से सिवा न थी पहुँची दुखों की आँच तो दुनिया तमाम-शुद शहर-ए-दिल-ए-तबाह में पहुँचूँ तो कुछ खुले क्या बच गया है राख में और क्या तमाम-शुद उश्शाक़ पर ये अब के अजब वक़्त आ पड़ा मजनूँ के दिल से हसरत-ए-लैला तमाम-शुद हम शहर-ए-जाँ में आख़िरी नग़्मा सुना चले समझो कि अब हमारा तमाशा तमाम-शुद इक याद-ए-यार ही तो पस-अंदाज़ है 'हसन' वर्ना वो कार-ए-इश्क़ तो कब का तमाम-शुद