वक़्त अजीब चीज़ है वक़्त के साथ ढल गए तुम भी बहुत बदल गए हम भी बहुत बदल गए मेरे लबों के वास्ते अब वो समाअ'तें कहाँ तुम से कहें भी क्या कि तुम दूर बहुत निकल गए तेज़ हवा ने हर तरफ़ आग बिखेर दी तमाम अपने ही घर का ज़िक्र क्या शहर के शहर जल गए मौजा-ए-गुल से हम-कनार अहल-ए-जुनूँ अजीब थे जाने कहाँ से आए थे जाने किधर निकल गए शौक़-ए-विसाल था बहुत सो है विसाल ही विसाल हिज्र के रंग अब कहाँ मौसम-ए-ग़म बदल गए सूरत-ए-हाल अब ये है कि लोग ख़िलाफ़ हैं मिरे ऐ मिरे हम-ख़याल-ओ-ख़्वाब तुम तो नहीं बदल गए बू-ए-गुल और हिसार-ए-गुल अहल-ए-चमन पे ज़ुल्म है अपनी हुदूद-ए-ज़ात से जान के हम निकल गए आब-ए-हयात जान कर ज़हर पिया गया यहाँ ज़हर भी ख़ामुशी का ज़हर-ए-जिस्म तमाम गल गए शम-ए-बदन भी थे कई राह-ए-जुनूँ में हम-सफ़र ताब-ए-मुक़ावमत न थी धूप पड़ी पिघल गए