आलम-ए-हू तिरे वहशी ने जब आबाद किया अर्श को फूँक दिया फ़र्श को बर्बाद किया तेरे जल्वे ने दिल-ए-ज़ार को आबाद किया तू हमें भूल गया हम ने तुझे याद किया ये पस-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी ख़लिश-ए-पा कैसी शायद अब वादी-ए-वहशत ने मुझे याद किया चंद तिनके थे फ़क़त मेरा नशेमन क्या था उन पे भी बर्क़ गिरी उन को भी बर्बाद किया हम से पूछे कोई अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है हम ने आलम तह-ओ-बाला दम-ए-फ़रियाद किया अपनी नाकामी-ए-तक़दीर पे रोने वाले वा'दा-ए-रोज़-ए-अज़ल तू ने कभी याद किया थी यही आक़िबत-अंदेशी-ए-दिल ऐ 'ज़ाहिर' मुझ को बे-फ़ाएदा कम-बख़्त ने बर्बाद किया