आलम की मुश्किलात को आसाँ बनाइए अब दर्द-ए-दिल को माया-ए-ईमाँ बनाइए या कीजिए न शिकवा-ए-बे-लुत्फ़ी-ए-ख़लिश या दिल के लख़्त लख़्त को पैकाँ बनाइए या आरज़ू-ए-लुत्फ़-ओ-करम तर्क कीजिए या हाल-ए-दर्द क़ाबिल-ए-दरमाँ बनाइए या मुँह न मोड़िए कभी आलाम-ए-दहर से या ज़िंदगी को बे-सर-ओ-सामाँ बनाइए आने ही को है मंज़िल-ए-मक़्सूद की ख़बर शीराज़ा-ए-हयात परेशाँ बनाइए आसानियों को मोजिब-ए-आफ़ात जानिए दुश्वारियों को वज्ह-ए-सद-इमकाँ बनाइए जल्वों को क़ैद-ए-रस्म से आज़ाद कीजिए आलम को हर निगाह में हैराँ बनाइए तकलीफ़ कीजिए कभी 'हिरमाँ' के हाल पर इक बे-नवा को बंदा-ए-एहसाँ बनाइए