आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया गुलचीं नहीं सींचेंगे गुलज़ार जो मैं रोया बरसेगा जो अब्र आ कर खुल जाएगा दम भर में आँसू नहीं थमने के ऐ यार जो मैं रोया रोओगे झरोके में तुम हिचकियाँ ले ले कर ऐ यार कभी ज़ेर-ए-दीवार जो मैं रोया ज़ख़्मी हूँ तो होने दो क्यूँ यार बिसोरूँ मैं क्या बात रही खा कर तलवार जो मैं रोया हूँ मुस्तइद-ए-रिक़्क़त फ़रहाद मुझे बहला ले डूबेंगे तुझ को भी कोहसार जो मैं रोया मजनूँ ने कहा जाओ वहशत उन्हें दिखलाओ बैठा हुआ सहरा में बे-कार जो मैं रोया रहम आ ही गया उन को कटवा दे मिरी बेड़ी ज़िंदान में चिल्ला कर इक बार जो मैं रोया की ग़ुस्से के मारे फिर उस ने न निगह सीधी इन अँखड़ियों का हो कर बीमार जो मैं रोया बेताबी ओ ज़ारी पर मेरी उन्हें रहम आया दिखला ही दिया मुझ को दीदार जो मैं रोया आराम वो करते हैं रुलवा न मुझे ऐ दिल ठहरेंगे न वो हो कर बेदार जो मैं रोया आए थे ब-मुश्किल वो लाए थे 'शरफ़' उन को फिर उठ गए वो हो कर बेदार जो मैं रोया