आलम में हुस्न तेरा मशहूर जानते हैं अर्ज़ ओ समा का उस को हम नूर जानते हैं हर-चंद दो जहाँ से अब हम गुज़र गए हैं तिस पर भी दिल के घर को हम दूर जानते हैं जिस में तिरी रज़ा हो वो ही क़ुबूल करना अपना तो हम यही कुछ मक़्दूर जानते हैं सौ रंग जल्वागर हैं गरचे बुतान-ए-आलम हम एक तुझी को अपना मंज़ूर जानते हैं लबरेज़-ए-मय हैं गरचे साग़र की तरह हर दम तिस पर भी आप को हम मख़्मूर जानते हैं कुछ और आरज़ू की हरगिज़ नहीं समाई अज़ बस तुझ ही को दिल में मामूर जानते हैं 'ईमान' जिस के दिल में है याद उस की हर दम हम तो उसी की ख़ातिर मसरूर जानते हैं