आलम-ए-सोज़-ए-तमन्ना बे-कराँ करते चलो ज़र्रे ज़र्रे को शरीक-ए-कारवाँ करते चलो कितने रौशन हैं वो आरिज़ कितने शीरीं हैं वो लब रास्ता कट जाएगा ज़िक्र-ए-बुताँ करते चलो शाम-ए-ग़म की ज़ुल्मतें हैं और सहरा-ए-हयात दीदा-ए-बेदार को अंजुम-फ़िशाँ करते चलो रास्ते में बुझ न जाएँ आरज़ुओं के चराग़ ज़िक्र-ए-मंज़िल कारवाँ-दर-कारवाँ करते चलो जाने किस आलम में आएँ आने वाले क़ाफ़िले साया-ए-दीवार-ए-जानाँ जावेदाँ करते चलो मज़हर-ए-तहज़ीब है इक एक तार-ए-पैरहन बस यूँही अंदाज़ा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ करते चलो