वफ़ा जब ज़िंदा होती है जफ़ा दम तोड़ देती है सितमगर की हर इक ज़ालिम अदा दम तोड़ देती है तकब्बुर की फ़सीलों से कभी हम रुक नहीं सकते कि बच के रू-ब-रू झूटी अना दम तोड़ देती है अगर मज़लूम टकराते हैं दीवार-ए-मज़ालिम से तो गिर जाता है ज़िंदाँ और सिरा दम तोड़ देती है सुबूत-ए-बे-गुनाही क्यूँ न हो मेरी गुनहगारी अता करता है जब कोई ख़ता दम तोड़ देती है चमन की आबियारी ख़ून से करती रहो 'मानी' चमन के ख़ुश्क होने से सबा दम तोड़ देती है