आलाम-ओ-रंज-ओ-ग़म की तभी लब-कुशाई थी जब साहिलों पे अश्कों ने बस्ती बसाई थी दरिया चमक रहा था सितारों के ज़ोर पर इक रात कहकशाँ ने कहानी सुनाई थी दिल में यक़ीन है कि ये बे दाग़ काएनात इस इत्तिफ़ाक़ ने नहीं रब ने बनाई थी किस ने उदासियों से ये शामें निकाली हैं किस ने ख़मोशियों से ये वादी सजाई थी तन्नाज़ी-ए-जमाल था वो तुमतराक़-ए-हुस्न चेहरे पे ख़ाक इश्क़ की जल्वा-नुमाई थी मुझ को गुमाँ हुआ था धुआँ देख कर वहाँ उस ताक़चे में सिर्फ़ दिए की दहाई थी मैं उस के सामने से गुज़र के गया तो 'जौन' नज़रें नहीं मिलीं थीं फ़क़त हम-नवाई थी