आँधियाँ उट्ठीं फ़ज़ाएँ दूर तक कजला गईं इत्तिफ़ाक़न दो चराग़ों की लवें टकरा गईं आह ये महकी हुई शामें ये लोगों के हुजूम दिल को कुछ बीती हुई तन्हाइयाँ याद आ गईं इस फ़ज़ा में सरसराती हैं हज़ारों बिजलियाँ इस फ़ज़ा में कैसी कैसी सूरतें सँवला गईं ऐ ख़िज़ाँ वालो! ख़िज़ाँ वालो! कोई सोचो इलाज ये बहारें पाँव में ज़ंजीर सी पहना गईं फिर किसी ने छेड़ दी उज़्र-ए-जहाँ की दास्ताँ दिल पे जैसे भीगी भीगी बदलियाँ सी छा गईं