आरिज़-ए-शम्अ' पे नींद आ गई परवानों को ख़्वाब से अब न जगाए कोई दीवानों को उन को मा'लूम है रिंदों की तमन्ना क्या है अक्स-ए-रुख़ डाल के भर देते हैं पैमानों को ऐ दिल-ए-ज़ार उधर चल ये तज़ब्ज़ुब क्या है वो तो आँखों पे उठा लेते हैं मेहमानों को वो भी मुतलाशी-ए-यक-जल्वा-ए-गुम-गश्ता हैं हम ने नज़दीक से देखा है परी-ख़ानों को हो गए साफ़ अयाँ रूह-ओ-बदन के नासूर रौशनी मार गई आज के इंसानों को उन के हर चाक से तनवीर-ए-वफ़ा फूटेगी जश्न-ए-फ़र्दा में सजाएँगे गरेबानों को क़लम-ए-दार से तहरीर-ए-रसन से हम ने इक नया मोड़ दिया इश्क़ के अफ़्सानों को जोश दरिया के क़राइन ये बताते हैं 'ज़हीर' मौज खा जाएगी साहिल के शबिस्तानों को