आँख का नींद से रिश्ता नहीं होने देता मैं तिरे ख़्वाब को रुस्वा नहीं होने देता जी तो करता है बहुत फूट के रो लेने का मैं मगर अपना तमाशा नहीं होने देता ख़ुद तो ख़ातिर में नहीं लाता है मुझ को लेकिन वो मुझे और किसी का नहीं होने देता वो सितम-पेशा नहीं है मगर यूँ कह लीजे मेरे अशआ'र को झूठा नहीं होने देता होंट से होंट भिड़ा देता है अनजाने ही हादिसा रखता है बोसा नहीं होने देता