आँख कहती है हमें अब अश्क-बारी छोड़ दें आँसूओं से दिल की कैसे आब्यारी छोड़ दें है मुक़द्दर पर यक़ीं हम को रहे इतना ख़याल ख़ाक है क़िस्मत तो कैसे ख़ाकसारी छोड़ दें बद-लिहाज़ी जिस क़दर मेरी तबीअत में है दोस्त ये भी मुमकिन है मुझे सब बारी बारी छोड़ दें दोस्तो करना पड़ेगा अब हमें ये फ़ैसला दुनिया-दारी छोड़ दें या इंकिसारी छोड़ दें हो रही है दोस्तो तुम को ग़लत-फ़हमी कोई कैसे मुमकिन है परिंदे को शिकारी छोड़ दें इश्क़ को मतलूब हैं बे-चैनियाँ जज़्बात की ज़िंदगी कहती है हम को बे-क़रारी छोड़ दें दूर रह कर आदमी बेचैन रहता है ज़रूर आप मेरे हिज्र की मंज़र-निगारी छोड़ दें दोस्तों और दुश्मनों का इल्म होना चाहिए किस लिए 'मन्नान' हम राय-शुमारी छोड़ दें