आँख में नींदों के डेरे पाँव में जामिद हवस जान में हर-सू ख़मोशी जी को उलझन कुछ नहीं नय गिरफ़्तारी में लज़्ज़त नय रवानी में मज़ा इक सुकूँ सब्ज़ा-ज़दा साँसों में फिसलन कुछ नहीं या समाँ साकित हुआ या फिर बसीरत खो गई शोर सड़कों पर नहीं रंगों में बन-ठन कुछ नहीं वलवला बादल में मफ़क़ूद और चादर है हवा टीन पर गिरती हुई बूंदों में धड़कन कुछ नहीं नय सुतूनों का सहारा और न छत का हौसला इक मकाँ ऐसा मिला दीवार आँगन कुछ नहीं आसमाँ बे-साँस है सहरा सुकूत-ए-साज़ है एक अर्सा हो गया अब ज़ेब-ए-दामन कुछ नहीं