मा'नी हर एक लफ़्ज़ के ऐसे निकालिए हर दर्द को ख़ुलूस के पैकर में ढालिए ख़ामोश पेड़ देख रहे हैं सर-ए-फ़लक मुद्दत से तेरे शहर में दस्त-ए-दु’आ लिए परछाइयों के शहर में अब सोचना ही क्या ख़ुद को बदन के ख़ोल से बाहर निकालिए देता है कौन देख लो अहल-ए-वफ़ा का साथ जाओगे कितनी दूर चराग़-ए-वफ़ा लिए 'ख़ालिद' इन्हें भी वक़्त की भट्टी में डाल दो कुछ लोग आज आए हैं संग-ए-सदा लिए