आँख नम है न दिल फ़िगार अपना उठ गया ख़ुद से ए'तिबार अपना ज़िक्र होता है बार बार अपना टूटता ही नहीं ख़ुमार अपना देखना चाहते हो यार अपना तोड़िए पहले ये हिसार अपना याद करते रहे तुझे जब तक वक़्त गुज़रा है ख़ुश-गवार अपना दे दिया हम ने अपने हाथों से ग़ैर के बस में इख़्तियार अपना हर तुनुक-ताब पर मचल जाए इतना अर्ज़ां नहीं है प्यार अपना बे-ख़बर हो गया वही हम से जिस को रहता था इंतिज़ार अपना है यही आरज़ू मिरे मालिक हश्र में तू मुझे पुकार अपना