आँख से जब ख़्वाब का क़तरा गिरा मेरे ख़ाली हाथ पर लम्हा गिरा भूल जाएँगी हवाएँ रास्ता पेड़ से जब आख़िरी पत्ता गिरा फिर नया मौसम कोई तख़्लीक़ कर ज़र्दी-ए-तस्वीर पर सब्ज़ा गिरा रंग मेरे वो उठा कर ले गया कैनवस पर रह गया नुक़्ता गिरा हो गए बे-सम्त सारे फ़ासले अब मिरे पैरों में वो रस्ता गिरा