आँखों में छलकते हैं हम-रंग-ए-हिना आँसू महजूर के आँसू भी होते हैं बला आँसू बे-साख़्ता रोने से तस्कीन सी होती है दर्द-ए-दिल-ए-महज़ूँ की हैं कुछ तो दवा आँसू इक ख़स्ता-जिगर आशिक़ रो रो के ये कहता था आसान है हर मुश्किल गर दें न दग़ा आँसू सर ख़ाक पे धर धर कर देते हैं दुआ दिल से हैं आशिक़-ए-सादिक़ के पाबंद-ए-वफ़ा आँसू इक्सीर-ए-मुजर्रब हैं कर ज़ब्त इन्हें या'नी दिल ही का ये जौहर हैं दिल ही को पिला आँसू मजबूर हों बहने पर बे-साख़्ता गिर जाएँ क़ानून-ए-मोहब्बत में हैं जब ही रवा आँसू नासूर-ए-मोहब्बत का होता न 'अमीं' चर्चा ग़म्माज़ न बन जाते गर लाल-नुमा आँसू