आँखों में तैरती हुई यादों की झील है ये दिल तुझे भुलाने में थोड़ा बख़ील है होती थी तेरे साथ ही महसूस ज़िंदगी कि तेरा होना ज़िंदगी की इक दलील है तस्वीर तेरी दिल में लगाई हुई है और मेरे गले में अटका हुआ उस का कील है बिछड़े हैं तुझ से तो हमें अंदाज़ा ये हुआ इक आम रात से शब-ए-हिज्राँ तवील है क्या क्या कहूँ मैं तुम से जुदाई के मोड़ पर शर्मिंदगी ज़ियादा है मोहलत क़लील है