धड़कन भी मुनहसिर है मिरी तेरी याद पर चलता नहीं है ज़ोर दिल-ए-ना-मुराद पर गुज़री है आधी ज़िंदगी फ़िक्र-ए-मआ'श में इतने ज़रूरी काम हैं जो रक्खे बाद पर इतना सफ़ेद ख़ून है लोगों का अब यहाँ रिश्ता भी रखते हैं किसी ज़ाती मफ़ाद पर रखता है पाँव जैसे कोई अपने साए पर मैं ख़ुद से लड़ पड़ा हूँ ख़ुदी के फ़साद पर 'कौनैन' इस ज़मीं की कोई मिलकियत न थी आदम ने दस्तख़त किए इस जाएदाद पर