आप दिल खोल कर बे-दाद पे बे-दाद करें और हम ज़ब्त से लें काम न फ़रियाद करें हश्र में उस की नज़र हो गई नीची हम से हो सके जिन से वो अब शिकवा-ए-जल्लाद करें कुछ तो फ़रमाइए इंसाफ़ अगर है कोई चीज़ आप को दिल से भुलाएँ तो किसे याद करें दिल-ए-बेताब सँभलता ही नहीं सीने में एक मज़लूम की अब आप कुछ इमदाद करें आज इक क़ब्र पे 'आलिम' ये लिखा देखा था साकिन-ए-गुलशन-ए-हस्ती न मुझे याद करें