आप जब से क़रीब आ बैठे रंज-ओ-ग़म दूर हम से जा बैठे फ़ासले का किया तअ'य्युन ख़ुद फ़ासला जाने क्यों भुला बैठे बढ़ गया जब जुनून वहशत में साख उल्फ़त की हम गँवा बैठे रौशनी की तलाश में ख़ुद ही शम-ए-हस्ती को हम बुझा बैठे चाँद को छूने की तमन्ना में अपनी परवाज़ हम भुला बैठे खोए खोए से जब रहे तन्हा महफ़िल-ए-रंज-ओ-ग़म सजा बैठे जब तअ'ल्लुक़ नहीं रहा 'मोनिस' नक़्श-ए-माज़ी को हम मिटा बैठे